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हिंदुओं में ही जाति का भेदभाव क्यों ?

जाति न पूछो साधुओं की, पूंछ लीजिए ज्ञान।  मोल करो तलवारों का, पड़ा रहन दो म्यान।। कबीरदास का एक प्रसिद्ध दोहा है, जिसका अर्थ है "साधु की जाति नहीं, उसका ज्ञान पूछना चाहिए"। इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को उसकी जाति या बाहरी दिखावे से पहचान नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसके ज्ञान और गुण को पहचानना चाहिए।  यह दोहा हमें सिखाता है कि हमें किसी भी व्यक्ति के बारे में राय बनाते समय उसकी जाति या सामाजिक पृष्ठभूमि पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि उसके ज्ञान, चरित्र और आध्यात्मिक विशेषताओं पर ध्यान देना चाहिए।  दूसरे शब्दों में, यह दोहा सामाजिक भलाई और समरसता का संदेश देता है, और हमें सिखाता है कि सभी मनुष्य एक जैसे हैं और हमें उनके गुणों की पहचान करनी चाहिए। कालान्तर में जो व्यक्ति चमड़े का व्यापार करता था उसे चमार और जो हल्दी , मिर्च मसाला आदि बेचता था उसे बनिया कहा जाता था इसी तरह से के कार्यों से ही लोगों की पहचान होती थी। तो जो व्यक्ति चमड़े का प्यापर कर रहा है या फिर साफ सफाई का कार्य कर रहा है तो सीधी सी बात है वह व्यक्ति कोई दूसरा पवित्र कार्य हो अथवा कोई शुद्ध कार्य करना हो य...

भाई का बदला (भाग-1)

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एक गांव में रघुवीर नाम के एक किसान रहते थे और उनके दो बेटे थे। उन्होंने खुद अपनी पत्नी और दोनों बच्चों का पालन-पोषण किया क्योंकि उनके पास खुद की कोई जमीन नहीं थी। उनके दोनों बेटों के बड़े बेटे का नाम राम था। जो बिल्कुल सीधा और सरल स्वभाव का था। और दूसरा बेटा जो छोटा था उसका नाम श्याम था वह काफी हंसमुख और साहसी था।  राम जब कुछ बड़ा हुआ और अपने घर का नजारा देखा तो समझ आया कि उनका परिवार बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहा है तो उन्होंने प्रदेश में कहीं नौकरी करने का विचार किया और अपनी मां के पास पहुंच कर अपने मन की सारी बात बता दी। उनके पिता रघुवीर ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन जब राम ने बार-बार जिद करके कहा तो वह मान गये। अगले दिन राम कुछ कपड़े और खाने के लिए कुछ रोटी और कंबल लेकर घर से शहर की तरफ निकल पड़े। उन दिनों उपदेश का कोई साधन नहीं था जो अधिकांश लोग पैदल या बैलगाड़ी से चले जाते थे, यही कारण था कि राम लगभग एक दिन के समय के रास्ते में ही निकल जाते थे। उसके बाद सबसे घना शहर दिखाई दिया।  शहर में काम की तलाश करते हुए दो दिन निकले लेकिन काम नहीं मिला। थक कर हार कर राम एक बरगद के पेड...