गोरखा राइफल्स
गोरखा राइफल्स के वीर सैनिक विष्णुश्रेष्ठ
जिन्होंने 2 सितंबर 2010 को मौर्य एक्सप्रेस में पश्चिम बंगाल के जंगलों में हुई भीषण ट्रेन डकैती को अकेले ही विफल कर दिया।
इन्होंने MBBS एंट्रेंस की परीक्षा देकर लौट रही एक लड़की को 40 लुटेरों के गिरोह से बचाया, (जो उठा कर उसे साथ ले जा रहे थे।) और एक भीषण ट्रेन डकैती को अकेले ही विफल कर दिया, सभी लुटेरे भागने को मजबूर हुए जो मरने से बच गए थे, या गंभीर हालत में अस्पताल पहुंच गए।
ये गुरखा उस रात भारतीय सेना से रिटायर होकर अपने घर लौट रहे थे।
ट्रेन में डकैती पड़ गई, और यात्रियों से मोबाइल, गहने और लैपटॉप लूटे जाने लगे।
जब वो इनके पास पहुंचे तो उन्होंने इनके पास बैठी छात्रा को साथ ले जाना चाहा। लांसनायक विष्णुश्रेष्ठ ने बिजली की तेजी से तुरंत अपनी खुखरी कमर से निकाली और उस लुटेरे की पसलियों के बीच से जगह बनाते हुए उसके दिल को चीर डाला।
सभी डकैत इन पर हमला करने लगे, डिब्बे का गलियारा होने से जगह कम थी, डकैत आते और कटते जाते। उन्होंने अकेले ही 11 डकैतों को वहां काट कर बिछा दिया जिनमें से 3 दम तोड़ चुके थे।
वहां डिब्बे में इतना खून बहा कि स्त्रियां बेहोश हो गईं वो भयानक दृश्य देखकर। बाकी डाकू ट्रेन से कूदकर भाग गए।
गोरखा राइफल्स का उद्घोष है
"जय माँ काली"
मां काली का ये सपूत अकेला उस खून के फव्वारों के बीच खड़ा रहा और दुष्टों को काटता रहा, जब तक बचे हुए डकैत सब सामान छोड़छाड़ कर ट्रेन से कूद कर भाग नहीं गए। उस मुठभेड़ के बाद भारतीय सेना ने इन्हें वापस बुला कर प्रोमोशन दिया और इनसे आर्मी में बने रहने का अनुरोध किया, जिसे इन्होंने स्वीकार किया और आज भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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