आल्हा ऊदल
दोस्तों आप लोगों को ये बात तो मालूम ही है की द्वारिका पूरी तरह से समुंद्र की गहराइयों में समा गई थी। और सभी यदुवंशी मारे गए थे लेकिन उनकी पत्नियों और बच्चों को अर्जुन अपने साथ हस्तिनापुर लेकर चले गए थे।
सभी लोगों को ले जा पाना संभव नहीं था इसी लिए रास्ते में छोटे छोटे गांवों में कुछ लोगों को बसाते हुए जा रहे थे। और उन्ही में से कुछ लोग मध्यप्रदेश के गांवों में भी बसे हुए हैं
मध्यप्रदेश में यदुवंशी अहीरों की दो शाखा बहुत प्रसिद्ध है “हवेलिया अहीर” और “वनाफर अहीर” अर्थात वनों में रहने के कारण वनाफ़र कहलाए।
दसराज सिंह का विवाह उस समय ग्वालियर के हैहयवंश शाखा के यदुवंशी अहीर राजा दलपत सिंह की राजपुत्री देवल से हुआ था।
मान्यता के मुताबिक एक बार राजकुमारी देवल ने एक सिंह को अपनी तलवार के एक ही वार से ध्वस्त कर दिया था। तथा इस घटना को देख कर दसराज बहुत प्रभावित हुए। दसराज सिंह राजकुमारी देवल से विवाह प्रस्ताव लेकर राजा दलपत सिंह के पास पहुँचे। दलपत सिंह ने विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
वनाफ़र अहीरों और हैहय अहीरों में आपस में विवाह की परंपरा पुरानी थी एवं दसराज सिंह की माता भी हैहय शाखा की अहीर थीं। आपको ये बता दसराज सिंह और राजकुमारी देवल को माँ शारदा की कृपा से आल्हा ऊदल के रूप में दो महावीर पुत्रों की प्राप्ति हुई। माता देवल और दसराज सिंह के इन पुत्रों का नाम आल्हा और उदल था।
आपको से बता दे कि पृथ्वीराज चौहान और आल्हा ऊदल के बीच 52 बार युद्ध हुआ और हर बार पृथ्वीराज की सेना को भारी क्षति हुई और मूँह की खानी पड़ी। बुंदेली इतिहास में आल्हा ऊदल का नाम बड़े ही आदर भाव से लिया जाता है। बुंदेली कवियों ने आल्हा का गीत भी बनाया है। जो सावन के महीने में बुंदेलखंड के हर गांव गली में गाया जाता है।
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