पत्थर की कीमत

एक दिन एक लड़का एक महात्मा के पास गया और उसने कहा कि गुरु जी मैं आपसे गुरु मंत्र लेना चाहता हूं, क्या आप मेरे शिष्य हैं।
 महात्मा जी ने लड़के से कहा ठीक है बेटा लेकिन तुम्हें कुछ दिन हमारे आश्रम में रहकर हमारे आदर्शों का पालन करना होगा और साहस दिखाना होगा।
लड़का आदमी जाता है और आश्रम में सभी शिष्यों का पालन-पोषण करता है और महात्मा जी का मन भरपूर सेवा करता है। कुछ ही दिनों में लड़के ने महात्मा जी का मन जीत लिया।
एक दिन महात्मा जी ने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा, कि हम सेवा से बहुत खुश हैं इसलिए कल सुबह तुम स्नान करके हमारे पूजा स्थल पर आ जाओ, कल हम तुम्हारा गुरु मंत्र लेकर आएंगे।
लड़का बहुत खुश हुआ ।
अगले दिन सुबह स्नान करके लड़का गुरु जी के पास गया।
गुरु जी ने उसके कान में चुपके से राम नाम का मंत्र बोल दिया।
और उस से प्रति दिन इस मंत्र का जाप करते रहनें को कह दिया।
यह सुन कर लड़का चौंक गया और गुरुजी से बोला ।
गुरु जी ये मंत्र तो मै पहले से ही जानता था। मेरी तो इतने दिनों की मेहनत बेकार हो गयी।
ऐसा सोचकर वह लड़का बहुत दुखी हो गया। तब महात्मा जी ने वहीं जमीन पर पड़ा हुआ एक चमकीला एवं गोल पत्थर उठाया और उसे उस लड़के को देकर कहा । लो इस पत्थर को ले जाओ और बाजार में किसी से इसका मूल्य पूछ कर आओ। 
लड़का सबसे पहले एक सब्जी वाले के पास गया उसने उस सब्जी वाले को पत्थर दिखाया और बोला भाई आप इस पत्थर का हमे कितना मूल्य दे सकते हैं। सब्जी वाला बोला भाई यह पत्थर हमारे किसी काम का नहीं है मै इसका कोई मूल्य नहीं दे सकता।
उसके बाद लड़का उसे लेकर एक व्यापारी के पास गया और से वही सवाल किया व्यापारी ने पत्थर को देखा और कहा भाई वैसे तो यह मेरे किसी काम का नहीं है फिर मै इस के एक रुपये दे दूंगा इससे वस्तुओं को तोलने का काम हो जायेगा।
उसके बाद लड़का एक मूर्तिकार के पास गया ।
मूर्तिकार ने उस पत्थर को ध्यान से देखा और उसने उसके 100 रुपये में खरीदने को कहा । लड़के ने पत्थर वापस लिया और फिर वह एक जौहरी के पास पहुँच गया ।  जौहरी ने पत्थर को बहुत ही बारीकी से देखा और उसने उस पत्थर का मूल्य 1000 रूपये बताया। 
लड़के ने पत्थर वापस लिया और आश्रम की तरफ चल दिया । वह रास्ते भर यही सोचता रहा कि आखिर एक पत्थर को कोई लेना ही नहीं चाहता और कोई 1000 रूपये में भी खरीदने को तैयार है ऐसा कैसे हो सकता है। सोचते सोचते वह आश्रम में पहुँच गया और महात्मा जी को पूरी बात बता दिया।
तब महात्मा जी ने उसे समझाया कि जिस प्रकार एक पत्थर की सही कीमत जौहरी को मालूम होती है और वह एक साधारण से पत्थर को हीरा बना देता है उसी प्रकार एक गुरु के द्वारा दिये गए साधारण से मंत्र के निरंतर ध्यान और जाप करते रहने से दिव्य ज्ञान और सिद्धि की प्राप्ति होती है।

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