हिंदुओं में ही जाति का भेदभाव क्यों ?
जाति न पूछो साधुओं की, पूंछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवारों का, पड़ा रहन दो म्यान।। कबीरदास का एक प्रसिद्ध दोहा है, जिसका अर्थ है "साधु की जाति नहीं, उसका ज्ञान पूछना चाहिए"। इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को उसकी जाति या बाहरी दिखावे से पहचान नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसके ज्ञान और गुण को पहचानना चाहिए। यह दोहा हमें सिखाता है कि हमें किसी भी व्यक्ति के बारे में राय बनाते समय उसकी जाति या सामाजिक पृष्ठभूमि पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि उसके ज्ञान, चरित्र और आध्यात्मिक विशेषताओं पर ध्यान देना चाहिए। दूसरे शब्दों में, यह दोहा सामाजिक भलाई और समरसता का संदेश देता है, और हमें सिखाता है कि सभी मनुष्य एक जैसे हैं और हमें उनके गुणों की पहचान करनी चाहिए। कालान्तर में जो व्यक्ति चमड़े का व्यापार करता था उसे चमार और जो हल्दी , मिर्च मसाला आदि बेचता था उसे बनिया कहा जाता था इसी तरह से के कार्यों से ही लोगों की पहचान होती थी। तो जो व्यक्ति चमड़े का प्यापर कर रहा है या फिर साफ सफाई का कार्य कर रहा है तो सीधी सी बात है वह व्यक्ति कोई दूसरा पवित्र कार्य हो अथवा कोई शुद्ध कार्य करना हो य...