कौवे की कहानी (the crow story )

रामायण के धार्मिक एवं पवित्र ग्रंथ रामायण के एक प्रसंग के अनुसार श्रीराम चन्द्र जी अपने वनवास के एक दिन माता सीता के साथ एक पुष्प वाटिका में बैठे थे।
श्री राम जी ने कुछ पुष्प तोड़कर एक सुंदर पुष्पों का हार बनवाया और अपने हाथों से माता सीता जी को पहनाया।
इसी प्रकार अनेक प्रकार के पुष्पों के आभूषण श्री राम जी ने सीता माता को धारण किए थे, वैसे ही माता सीता जी तो सुंदर थीं लेकिन इन फूलों के आभूषणों ने अपने पुष्पों के आभूषणों में चार चांद लगा दिए।
हिंदू धार्मिक और पवित्र ग्रंथ रामायण में एक घटना के अनुसार, श्री राम चंद्र जी अपने वनवास के दौरान एक दिन माता सीता के साथ फूलों के बगीचे में बैठे थे।
श्री राम जी ने कुछ फूल तोड़कर एक सुन्दर फूलों का हार बनाया और अपने हाथों से माता सीता जी को पहनाया।
इसी प्रकार श्री राम जी ने अनेक प्रकार के फूलों के आभूषण बनाकर सीता माता को पहनाए, यद्यपि माता सीता सुन्दर थीं, परन्तु इन फूलों के आभूषणों ने उनकी सुन्दरता में चार चांद लगा दिए।
उसी समय आकाश मार्ग से देवताओं के राजा इंद्र के पुत्र जयन्त कहीं जा रहे थे। उसकी नजर माता सीता जी पर पड़ी तो वह उनकी प्राकृतिक सुंदरता को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया।
वह अपने निकट जाना चाहता था कि वहाँ श्रीराम जी का दर्शन हो। और मन ही मन श्रीराम चंद्र जी से भी इच्छा थी कि अंतिम सीता जी को कैसे प्राप्त करें।
उसी समय देवताओं के राजा इंद्र का पुत्र जयंत आकाश मार्ग से कहीं जा रहा था। जब उसकी नजर माता सीता पर पड़ी तो वह उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया।
वह उनके पास जाना चाहता था लेकिन वहां श्री राम जी को देखकर डर गया और मन में श्री राम चंद्र जी के प्रति ईर्ष्या भी हो रही थी कि सीता जी को कैसे प्राप्त किया जाए।
ठोस विचारधारा के बाद अचानक उसके मन में पता नहीं चला और उसने कावे का रूप बना लिया और सीता जी के पैर में चोंच मार कर वहां से भाग निकला।
काउवे की चोंच की चोट से सीता जी के पर्यटन स्थल खोहा लगा। श्रीराम चंद्र जी काउवे के उद्दंड को देखकर बहुत क्रोधित हुए और एक सर्पत के सरकंडे का तीर बनाया और अभिमंत्रित करके काउवे के ऊपर छोड़ दिया।
कुछ देर सोचने के बाद अचानक उसके मन में न जाने क्या आया और उसने कौवे का रूप धारण कर सीता के पैरों पर चोंच मारी और वहां से भाग गया।
कौवे की चोंच की चोट से सीता के पैरों से खून बहने लगा। कौवे का अहंकार देखकर श्री रामचन्द्र जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वहीं एक सरपत की ईख का बाण बनाकर कौवे पर छोड़ दिया।
आगे आगे कौवा भाग रहा था और पीछे तीर द्वारा उनका पीछा किया जा रहा था कौवे के रूप में तीर्थ लोक में भागता जा रहा था लेकिन सरकंडे वाले तीर द्वारा श्रीराम जी को हटा दिया गया और उनका पीछा नहीं छोड़ा जा रहा था। रास्ते में उसने कई देवताओं से मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई मदद नहीं मिली, अचानक रास्ते में देववर्षि नारद जी मिल गए। कौवे रूपी जयन्त ने देवर्षि नारद जी को अपनी सारी बात बताई।
कौआ आगे-पीछे दौड़ रहा था और बाण उसका पीछा कर रहा था। कौए का रूप धारण किए जयंत तीनों लोकों में दौड़ता रहा, लेकिन श्री राम द्वारा छोड़ा गया बाण उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था। रास्ते में उसने कई देवताओं से मदद के लिए पुकारा लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए नहीं आया, अचानक रास्ते में उसकी मुलाकात देवर्षि नारद जी से हुई। कौए बने जयंत ने देवर्षि नारद जी को अपनी सारी कहानी सुनाई।
तब देवर्षि नारद जी ने उन्हें प्रभु श्री राम जी की शरण में अपनी कृपापात्र कहा।
अन्यथा उनके जीवन की रक्षा करने वाला त्रिलोकों में कोई नहीं है।
थका हारा जयजयंती, देवर्षि नारद जी की बात वापस मांगने पर श्रीराम प्रभु के पास आया और अपनी ही दयालुता की कृपा मिली। तब श्रीराम चन्द्र जी ने कौवे को जीवन दान दिया। लेकिन भविष्य में ऐसी सुसंगति न करे इसलिए सज़ा के तौर पर इन प्रभु ने एक ही तीर से उस कौवे की एक आँख फोड़ दी।
तब देवर्षि नारद जी ने उन्हें भगवान श्री राम जी की शरण में जाकर अपनी गलती की क्षमा मांगने को कहा।
अन्यथा तीनों लोकों में उसके प्राणों की रक्षा करने वाला कोई नहीं है।
थका-हारा जयंत बेचारा देवर्षि नारद जी की सलाह मानकर प्रभु श्री राम के पास वापस आया और अपनी गलती की क्षमा मांगने लगा। तब श्री राम चंद्र जी ने उस कौवे को जीवन दान दे दिया। लेकिन भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो, इसलिए दंड स्वरूप प्रभु ने उसी बाण से उस कौवे की एक आंख फोड़ दी।
लोगों का मानना है कि जयन्त की वही गलती की वजह से आज भी सभी कौवों को एक आंख से कम दिखावा मिलता है और जब भी कौवों को किसी भी वस्तु पर गौर करना पड़ता है तो उसके लिए उसका साथी अपनी जिम्मेदारी टेढ़ी कर देता है। और उस ग़लती की सज़ा आज भी सभी कौवे मूर्तिमान रह रहे हैं।
लोगों का मानना है कि जयंत की उसी गलती के कारण आज भी सभी कौवों को एक आंख से भी कम दिखाई देता है और जब भी कौवों को किसी वस्तु को करीब से देखना होता है तो उसके लिए उन्हें अपनी गर्दन झुकानी पड़ती है और आज भी सभी कौवे उस गलती की सजा भुगत रहे हैं।
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